मित्रता कैसी हो :-
मित्रता कृष्ण और सुदामा जी कें जैसी हो ये मित्रता का सबसे आदर्श और ऊँचा उदाहरण है ।
और आज भी हर जगह इस मित्रता का उदाहरण दिया जाता है ।
तो ऐसा क्या था सुदामा जी की मित्रता मे । तो वो है निस्वार्थ प्रेम देखिए आज कल युवा कहते जरूर है , की ये मेरा बेस्ट फ्रेंड ( best friend ) लेकिन मन मे उनके कैसा भाव है , वो वही जानते है , आज कल की मित्रता धन , स्वार्थ पर टिकी है ।
क्षमा करे मित्रता नही फ्रेंडशिप( friendship ) क्यो कि फ्रेंड वही है जो केवल हमारे धन और तन को देखकर या स्वार्थ से बनते है ।
लेकिन फिर वही बात और फिर वही उदाहरण मित्रता हो तो सुदामा जी की तरह उस मित्रता मे स्वार्थ नही धन की कोई बात नही केवल निःस्वार्थ प्रेम ।
सुदामा जी जब प्रभु श्री कृष्ण के पास द्वारिका पहुचे तो कृष्ण जी ने ये नही सोचा की हम यहा के राजा है और लोग क्या कहेगे सुदामा जी को गले से लगाया और साथ ही साथ अपने सिंघासन मे बिठाया खुद चरणो मे बैठ गए और चरण पखारे ।
अब आप लोग सोच रहे होगे की हम भी ऐसा करे क्या नही हम ऐसा बिल्कुल नही कहेगे प्रभु के वो मित्र भी थे और ब्राह्मण भी इसलिए प्रभु ने उनके चरण पखारे । लेकिन आज कल हम समझते है मित्रता मे जाति नही देखी जाती ठीक है लेकिन एक भजनन्दी ब्राह्मण वास्तविकता मे पूजनीय है चाहे वो मित्र हो या हमसे उम्र मे छोटा ब्राह्मण हो ।
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